Saturday, December 7, 2013

ताली


वो पीटते हैं ताली
बायीं हथेली पर रखकर दायाँ हाथ
मैं पूछता हूँ माँ से                                                    
क्यों नहीं बजाते लोग ताली
दायीं हथेली पर रख कर बायाँ हाथ?
माँ कुछ नहीं कहती
दादी भी जवाब नहीं देती।
अगले दिन
भविष्य का बायस्कोप दिखाने
आते हैं घर में पंडितजी
देखते हैं माँ का बायाँ हाथ
और पिता जी का दायाँ
मैं समझ जाता हूँ सारा गणित
कि स्त्री का भविष्य
बाएं हाथ में होता है
और
पुरुष का दाएं में,
इसीलिए ठोकते हैं
वो ताली
बायीं हथेली पर रख कर दायाँ हाथ।

सलाम डेनिस मुकवेगे

नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद लिखा गया लेख जो जनसत्ता में प्रकाशित हुआ


हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ‘डेनिस मुकवेगे’ का नाम दूसरी बार नामांकित किया गया और दावेदारी भी प्रबल थी। लेकिन विजेता के रूप में रासायनिक हथियार निषेध संगठन के नाम की घोषणा के बावजूद मीडिया से लेकर हर कहीं एक ही नाम छाया रहा- मलाला यूसुफजई। मलाला के हिम्मती कदम के लिए दुनिया ने उसे सलाम भेजा, जिसकी वह हकदार भी है। लेकिन डेनिस मुकवेगे का जिक्र भी उतना ही जरूरी है जितना ओपीसीडब्ल्यू या मलाला का। मुकवेगे उन शख्सियतों में से हैं जो एक मशाल जलाए खड़े हैं और 1998 से अब तक उनके पैर नहीं थके। कांगो के रहने वाले डेनिस मुकवेगे सामूहिक बलात्कार के कारण महिलाओं की आंतरिक चोटों या क्षति को शल्य चिकित्सा के जरिए ठीक करने के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बलात्कार पीड़ित महिलाओं के लिए अस्पताल और फाउंडेशन की स्थापना कर डॉक्टर होने की नई परिभाषा गढ़ी है और अब तक तीस हजार से अधिक महिलाओं की मदद कर चुके हैं। डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो उन देशों में है, जहां सबसे अधिक बलात्कार की घटनाएं होती हैं और महिलाएं हर पल दहशत की जिंदगी जीती हैं।


                                      

किसी भी देश के लिए खनिज की उपलब्धता उसके लिए वरदान होती है, लेकिन कांगो के लिए यही अभिशाप का कारण रहा है। यहां के खनिजों पर कब्जा करने के लिए 1998 से शुरू दूसरे कांगो युद्ध में पचास लाख से ज्यादा लोग मारे गए, जिसका सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चियों पर पड़ा। कहा जाता है कि बलात्कार और यौन हिंसा के सबसे भयावह रूप का शिकार स्त्रियां यहीं होती हैं। सन 2011 के अमेरिकी जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक यहां पंद्रह से उनचास वर्ष की स्त्रियों के हरेक घंटे में बलात्कार के अड़तालीस मामले सामने आते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने तो इसे ‘रेयर कैपिटल आॅफ द वर्ल्ड’ घोषित कर दिया है। यह वही देश है जहां की खदान से यूरेनियम निकाल कर तैयार किए गए परमाणु बम हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए थे। 1960 में यह देश बेल्जियम से आजाद तो हुआ, लेकिन तब से आज तक चैन की सांस नहीं ले सका। कोबाल्ट, तांबा, हंग्स्टन आदि खनिजों की अधिकता उसे गर्त में धकेलती गई और आधिपत्य की लड़ाई में विद्रोही गुटों और पड़ोसी देशों द्वारा हमेशा यह हिंसा, भुखमरी, बलात्कार झेलने को अभिशप्त रहा। दासी बना कर महिलाओं के साथ किए जाने वाले कुकृत्य इस देश के मुंह पर लगातार कालिख पोतते रहे। लाखों महिलाओं का बलात्कार हुआ, बच्चियों तक को नहीं बख्शा गया।
इन सबके बीच बुकावू में डेनिस मुकवेगे ने 1998 में पांजी अस्पताल की स्थापना कर अब तक हजारों महिलाओं का इलाज किया है। संयुक्त राष्ट्र को पिछले वर्ष संबोधित करने वाले मुकवेगे ने बताया की कई दफा उनके पास महिलाएं ऐसी स्थिति में आती हैं, जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। मुकवेगे सामूहिक बलात्कार और हिंसा से पीड़ित महिलाओं के एक दिन में दस-दस ऑपरेशन करते हैं। दिन के उनके अठारह घंटे अस्पताल में महिलाओं की देखरेख में ही निकलते हैं। उनके इस हौसले के पर कतरने के लिए पिछले वर्ष उनके घर पर हमला हुआ, जहां उनकी गैरहाजिरी में उनकी बेटियों को बंदी बनाए रखा गया, ताकि जब मुकवेगे वापस लौटें तो उनकी हत्या की जा सके। लेकिन मुकवेगे बच गए और उनका सुरक्षा गार्ड हमले का शिकार हुआ। तमाम जोखिम के बावजूद आज भी वे मनोचिकित्सकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से स्त्रियों को मानसिक रूप से सुदृढ़ कर फिर उन्हें सामान्य करने की कोशिश करते हैं। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। कई महिलाएं इलाज के बाद अपने समुदाय का नेतृत्व कर अन्य महिलाओं को जागरूक कर रही हैं।
मुकवेगे ऐसे देश के वासी हैं जिसकी राख को इतिहास ने आज तक गर्म रखा है। समय-समय पर वह सुलगती रही है और अपनी बलात्कारी लपटों से उसने लाखों जिस्म झुलसाए हैं। यों महिलाएं हमेशा युद्ध में पुरुषों का मोहरा बनी हैं। समझा जाता है कि उन्हें कमजोर करना एक पक्ष की मानसिक जीत और दूसरे की मानसिक हार बन जाती है। यही कारण है कि पहला वार उन्हीं पर किया जाता रहा है। लेकिन इतिहास ने महिला की शक्ति भी देखी है, जहां वह भूगोल तक को बदलने का माद्दा रखती है। इसीलिए डेनिस मुकवेगे महिलाओं के इलाज के साथ-साथ उनके सोच को बदलने का काम भी कर रहे हैं, उन्हें उनके अस्तित्व की पहचान करा रहे हैं। आज जब डॉक्टर व्यावसायिकता के आगोश में लिपट गए हैं, ऐसे में डेनिस मुकवेगे नैतिक और सामाजिक सोद्देश्यता के साथ काम कर रहे हैं। उनके सम्मानित कार्य की विश्व पटल पर सराहना की जानी चाहिए। उनके काम में इतनी ताकत है कि कोई भी पुरस्कार उसके आगे हल्का ही रहेगा। खासतौर पर कांगो की महिलाओं के लिए यह डॉक्टर शायद सचमुच का भगवान है!

सम्मान विवाद और राजनीति